मौसम को भूल जाओ यार.
It's Not Working YAAR!
तू अपनी देख, यहां किसी को किसी की फिकर नहीं है.
सब बस अपनी पेलने में लगे हैं. दिन हो या रात, बस पेले जा रहे हैं.
हमारे जैसों की ऐसी की तैसी हो गयी है.
कमबख्त स्कूल किड्स की कोई सुनता ही नहीं?
बावले की तरह बस पढ़े जाओ, पढ़े जाओ या रटे जाओ, रटे जाओ.
ससुरा तोता बनाके रख छोड़ा मां-बाप ने, टीचरों ने.
नहीं करता मन पढ़ने का. क्यों जायें स्कूल-विस्कूल?
रात में सर्दी, दिन में मौसम बदला हुआ और न जाने क्या-क्या सहना पड़ता है स्कूल किड्स को.
ये ऐसे है जैसे किसी को बस्ता लेकर पाकिस्तानी सीमा पर छोड़ आओ और बोलो: आगे बढ़, सीना तान कर आगे बढ़. ऐसा बोल रहा है, जैसे बार्डर क्रास करने पर परसाद मिलेगा.
कमाल करते हो यार! तुमने तो हमारी बैंड बजा दी.
मैं नहीं जाना स्कूल.
I Hate Study, I Hate School.
लेकिन वही ढाक के तीन पात वाली बात, पैसा खर्च तो पैरेंट्स कर रहे हैं.
उनकी दुहाई है. उनकी उम्मीदें हैं. उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी गधे की तरह मेरी है.
After All I Am A School Kid.
हद होती है.
हद होती है.
अब तो हद हो ही गयी.
क्या मैं रिजाई तान कर न सोऊ? क्या मैं दस बजे न उठूं?
क्या मैं देर रात तक मनोरंजन न करुं?
आखिर ये आजादी का फायदा बालिग होने पर मिलता है या मां-बाप की छत्र-छाया से निकलकर खुले आसमान में घूमने पर?
I Am Senseless Now!
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. मेरी उंगलियां काम करना बंद कर रही हैं.
संडे भी मैंने अपनी DASH करवाई है.
और रोज ऐसा ही करवा रहूं हूं.
लेकिन बड़ा आदमी और सपनों की बात ने मुझे खुद ही अपनी डैश करने पर मजबूर कर दिया है.
हर किसी की डैश.
हर किसी की डैश.
-हरमिन्दर सिंह.
कमबख्त स्कूल किड्स की कोई सुनता ही नहीं?
Reviewed by Harminder Singh Chahal
on
January 15, 2017
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